चारधाम में टूरिज़्म सीजन चौपट, श्रद्धालु नहीं, मसूरी-नैनीताल में भी पसरा सन्नाटा

श्रद्धालु हों या सैलानी, दोनों के गायब रहने की वजह से उत्तराखंड का टूरिज्म सेक्टर चौपट हो गया है. ऐसी स्थिति में हर उस व्यक्ति को नुकसान हुआ है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से पर्यटन व्यवसाय से जुड़ा हुआ है

देहरादून. कहने को उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश कहा जाता है लेकिन कोरोना (COVID-19) ने इस बार पर्यटन (Tourism) क्षेत्र की रौनक की गायब कर दी है. चारधाम में बद्रीनाथ धाम का खुलना बाकी है लेकिन गंगोत्री-यमुनोत्री और केदारनाथ में भी श्रद्धालु नहीं हैं. मसूरी-नैनीताल में सैर-सपाटे की जगह सन्नाटा पसरा हुआ है और श्रद्धालु हों या सैलानी, दोनों के गायब रहने की वजह से टूरिज्म सेक्टर चौपट हो गया है. ऐसी स्थिति में हर उस व्यक्ति को नुकसान हुआ है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ है.

पिछले वर्ष 32 लाख श्रद्धालु, लेकिन अब है सन्नाटा

वर्ष 2019 की चारधाम यात्रा में उत्तराखंड में करीब 32 लाख श्रद्धालु आए जो 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद सबसे बड़ी संख्या थी. इस साल उम्मीद थी कि चारधाम में और बड़ी संख्या में श्रद्धालु आएंगे लेकिन बीते 26 अप्रैल के बाद तीन धामों के कपाट खुलने के बाद भी कोरोना के भय से कोई भक्त दर्शन को नहीं पहुंचा.

बता दें कि चारधाम उत्तराखंड के पर्यटन की रीढ़ है. देश-दुनिया से लोग यहां दर्शनों के लिए आते हैं और कोरोना के कारण सबसे बड़ी मार चार धाम यात्रा से जुड़े लोगों के कारोबार पर पड़ी है. हालत यह है कि होटल मालिक खाली बैठे हैं, छोटे कारोबारी निराश हैं, तीर्थ पुरोहित और पुजारियों का धंधा बंद है.

चारधाम यात्रा छह महीने की होती है और इसी में तमाम लोग साल भर की कमाई करते हैं. लेकिन कोरोना ने चारधाम रूट के कारोबार को फिलहाल खत्म कर दिया है.

मसूरी-नैनीताल की रौनक गुम

उत्तराखंड में मसूरी और नैनीताल, गढ़वाल और कुमांऊ दो ऐसे फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन हैं जहां 12 महीने पर्यटकों के चलते कारोबार गुलजार रहता है. लेकिन इस बार इन दो टूरिस्ट हॉटस्पॉट में चहल-पहल और रंगत गायब है. होटल कारोबारी, बोट चलाने वाले, गर्मियों में आइसक्रीम बेचने से लेकर खीरे-ककड़ी बेचने वाले तक परेशान हैं कि इस बार कमाई का क्या होगा. मौजूदा हालात में अगले कुछ महीने में भी कुछ बदलता हुआ नहीं दिख रहा.

उत्तराखंड सरकार को सिर्फ अप्रैल महीने में शराब, खनन, स्टांप ड्यूटी और टैक्स से करीब 1700 करो़ड़ रुपये का नुक़सान हुआ है. सरकार और शासन इसकी भरपाई आसान काम नहीं मानते. ऐसे में उन लोगों का क्या होगा जिनका घर-बार और कारोबार टूरिस्ट सीजन के भरोसे टिका है.

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